कैसा है यह जिन्दगी का
सफ़र आज कोई मिला है तो कल है उश्के बिछारने का डर
कभी लगते वो पास है तो कभी २ दूर है
तड़प मिलने की है पर दूर से ही दीदार करने को मजबूर है।
बहोत कठिन है जीवन की यह डगर
यही तो है जिन्दगी का !!!सफ़र हम उनके रहो में खुद को जलाते रहे
जलकर उनके रास्तो पे उजियारा फैलाते गए !!
वो अपनी मंजिल को पाते गए !!
मुझसे दूरियों का दायरा वो बढाते गए !!
अब तो अस्को से भर गयी है यह नज़र !!!
यह है जिन्दगी का सफ़र !!
हर किसी को अपना बनाता गया !!
सब पे जा लुटाता गया !!
सभी ने मेरे अरमानो को लुटा !!!
साथ चलने की खवाहिश थी मुझे !!
हर किसी से साथ मेरा छुटा इल्जाम न देंगे हम किसी !!
को जब मेरी तक़दीर ही निकला झूठा !!
फिर से जीवन में आयी है प्यार की एक लहर वो ना जाने ले जायेगी मुझे किधर
अब तक का मेरी जिन्दगी का सफ़र!!