Saturday, August 22, 2009

तू तो मेरी अपनी परछाई है!!



साथी तू तो मेरी जिन्दगी में समाई है कैसे कहे की तू मेरी अपनी नहि परायी है..

आज के ही दिन खुदा ने भेजा था..जमी पे तुझको.. क्यू की उनको भी पता था..आपके प्यार आपकी दोस्ती की जरुरत थी मुझको.

तेरी इन प्यारी प्यारी आँखों में हमारी सारी खुशिया समाई है.. कैसे कह दे की तू मेरी नहि परायी है..

अरे साथी तू तो मेरी अपनी परछाई है.. इस जनम की सारी ख़ुशी मैंने तुझसे ही तो पाई है.. तू तो मेरी अपनी है..बाकि सब तो परायी है.. तू तो मेरी अपनी परछाई है..
जब कभी भी देखा आँखों में मैंने तेरे आया मेरा ही चेहरा नज़र उश्मे.. जहा पल पल में बदलती है तदबीर देखि मैंने कभी ना बदलने वाली अपनी तस्वीर..

इस जहा की सारी ख़ुशी जैसे मेरे दामन में चली आयी है. तू तो मेरी अपनी है... बाकि सब तो परायी है..
साथी तेरे साथ हर रिस्तो को जीया मैंने. ख़ुशी दे दी मुझे और मेरे जख्मो का मलहम दिया तुमने भूल नहि सकता इसके किसी भी रूप को जो सबसे निराला है.. जिसे ना मिला साथी का प्यार वो बदकिस्मत और जिसे मिला
वो मुझसा किस्मत वाला है.. साथी का प्यार दोस्ती सब मेरे हिस्से आयी है.. यह मत पूछो की यह बंधन किसने बनाई है.. साथी तो मेरी अपनी है बाकि सब परायी है..
कैसे कह दे की यह गैर है मेरे लिए!! यह तो मेरी खुद की परछाई है.