खुद से नाराज़ हु मैं
खुद का गुनेह्गर हु मैं
हर बार चोट दी है मैंने इशे....
क्यू की चोट खाने का हक़दार हु मैं !
खुद का गुनहगार हु मैं !!
हम क्यू खुद को कम आकते है.
अपने हिस्से की प्यार और ख़ुशी भी क्यू औरो में बाट ते है..
हम अपनी ही दुःख के खरीदार है हम...
खुद का गुनहगार है हम !!
माना की वो मेरे साँसों में बसते थे..
मन ही मन उनसे बाते किया करते थे..
थी क्या जरुरत मुझे उन्हें सबकुछ बनाने की
जब बहोत कुछ के हक़दार थे तुम
खुद के गुनहगार है हम !!
दूर थे वो हमसे.... दिल को एक सकूँ था
पास बुलाया तो दिल में डर और आँखों में दिख जाये ना
तस्वीर उनकी...दिल में डर जरुर था..
की मैंने खता ऐसी...बाट डाली सबसे उनकी प्यार और अपनी हसी
मुझे क्या खबर थी...की यह ख़ुशी एक दिन मुझसे खो जायेगी..
मुझसे दूर चली जायेगी और उनकी हो जायेगी..
अब यह ख़ुशी ना जायेगी कभी पाई
क्यू की दिल को मेरे यह रस्मो और रिश्ते ना मुझको भायी!!
मैं भी कैसा हु बावला...और देखो मेरी यह कर गूजाये
सबकुछ खो कर भी....अब भी अंधेरो में ढूँढ रहा हम परछाई
उनके प्यार का तलबगार हु मैं..
अपनी खुशियों का गुनहगार हु मैं.
मिले हर मोड़ पे रिश्ते कई
सबने मेरे जिन्दगी में रंग भरे.. कुछ ने काले..कुछ ने हरे.
कुछ ने नीले पीले भरे
हर रंगों में उनके प्यार के रंगों को पाया..
यु तो हर किसी ने चाहा पर उनकी चाहत hi q मेरे दिल को
खूब भाया !!
आज उनकी चाहत को दिल में दबा कर चला जाऊँगा मैं..
इतनी जाऊँगा दूर उनसे....की खुद की यादो को भी उनसे दूर पाऊँगा मैं.
कैसे कहे की वो मेरे गुनहगार है...
अपनी दुःख के खुद हक़दार है हम!!!
2 comments:
wow.. es mein tho bahut sadness hai
paar bahut ache se lika hai aapki feelings.
mast hai.. bahut duk bari hai..
wo kon hai??
तेरे शब्द नहीं ...दर्द ही दर्द है यहाँ तो
बहुत कुछ खो कर ...कुछ मिलता है यहाँ पे
साथी
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