
ओ माँ तू मुझे बड़ी लगती है प्यारी तुझपे कर दू अर्पण यह जीवन सारी फिर भी कैसे उतरेगा ओ माँ मेरा ऋण तुम्हारी !! छोटा सा बिज बनकर तेरे गर्भ में आया मैं.. बनके तेरा अंश तेरे जिन्दगी में जगह पाया मैं !! उष बिज से बना टेसू , टेसू से पौधा बनाया नित दिन अपने दूध रूपी खून पिला कर हमें हरा भरा पेड़ बनाया बक्शी मुझे यह जहा तुमने उपहार में... तेरी हार होती हमारे हर हार में..... ओ माँ तू है कितनी अच्छी कितनी प्यारी... जिसपे वार दू यह दुनिया सारी....फिर भी रहेगा कर्ज हमेशा मुझपे ओ मैं तुम्हारी !! आँखे जो खोली तो खुद को तेरे गोद में पाया !! दर्द हुआ मुझे और तेरे आँखों में दर्द उतर आया !! ओ माँ तुम हों कितनी अच्छी क्यू तुम में भरी है खुबिया सारी.. अपनी ममता भरी छाव से भर देती हो हमारे जिन्दगी में रंग हसने लगती है जिन्दगी की हर सुखी डाली ऐसी होती है माँ हमारी ना होती थी कोई चिंता और ना ही होती थी...कोई फिकर.... तेरे ममता के साये में हम होते थे...बे फिकर
ओ माँ तू मुझे बड़ी लगती है प्यारी तुझपे कर दू अर्पण यह जीवन सारी फिर भी कैसे उतरेगा ओ माँ मेरा ऋण तुम्हारी !
पार्ट २ माँ के मन की ब्यथा एक बेटे की जुबानी :
अपनी ममता भरी छाव से भर देती हो हमारे जिन्दगी में रंग !!!!हसने लगती है जिन्दगी की हर सुखी डाली!!! ऐसी होती है माँ हमारी !!
ना होती थी कोई चिंता और ना ही होती थी कोई फिकर!!
तेरे ममता के साये में हम होते थे बे फिकर!!!
फिर आज क्यू तू खुद को महफूज नहीं मानती है!!!
तुने तो हमेशा हमें अपने शरीर का अंग समझा !!!
फिर तेरी खुद की संतान ही तुम्हे क्यू अपना नही मानती है !!
क्यू तेरे अरमानो का खून किया जाता है!!!
जो तेरे है अंश वो तुझसे ही कैसे खुद को अलग आकता है.!!!
शायद कमी रह गयी तेरी चाह में!!!
तुने दिए जो मुझे बडे सपने....शायद वही आ गया माँ बेटे के बिच राह में!!
क्यू किया तुमने इतना समर्पण!!!
जो तेरी खुद की औलाद ही दिखने लगी तुझको दुनिया का दर्पण!!!!
कौन समझेगा उष माँ की तर्पण
जिसने पल पल अपने सुख सुविधा सबकुछ किया अपने औलाद को अर्पण!!!
तेरी कोई जगह नही ले सकता ओ माँ हमारी !!!
कितना भी कुछ कर दू पर कभी चुकता नही हो सकता तुम्हारा ऋण ओ मेरी माँ तुम्हारी