Sunday, July 10, 2011

tu dil ke mere paas hai

tu mere dil ke paas hai...

Monday, November 16, 2009

bewafa ho jate hai..

 


ये जिन्दगी है ऐसी !! जब मिली तो लगी फूलो जैसी...
देखे जो हमने सपने...लगे मुझे बहोत अपने...जब टूटा ख्वाब मेरा
तो पता चला दर्द होता है क्या ??

कभी खुद मैंने उस राह पे ले जा के छोरा !! जिस पर निशान मैंने साथी के थे मैंने पाए..
आज अपनी ही पहचान को फिर रहा हु मारा

किया था हमने प्यार , यह सोच कर की हमको मिलेगी मुझको भी ...
उनके प्यार की गहरी छाव ...क्या पता था की मुझ्को
, वो कर जायेंगे अकेला इश सफ़र में मुझको.

टूटे जो हम डाली से फिर जुड़ पाए हम....
पतझर में हम हवावो के साथ...उड़ते जा रहे थे हम...
थी खबर मुझे अपने मंजिल की ... ही करवा का पता था अपना....

बस तक़दीर ले जा रही थी मुझे .
औरो के रौशनी के लिए हर रात जलता रहा मै..

छिल गए थे पाव मेरे...फिर भी चलता रहा मै..
. थी मुझे खबर कैसा होगा मेरा आने वाला कल....
देखर जिनकी होठो की मुस्कान
.हर अपनी खुशियों को करता रहा हर दिन कुर्बान..

एक दिन उश्ने मुझसे फेर ली अपनी नज़र...
और मै उशे देखता राह गया एक टक उशे बिस्रित नजरो से...
थी मुझे उष-से कोई सिकवा ... थी...कोई शिकायत ...

हम जान गए थे..जिन्दगी का यह सच...
जो खिलते है फूल डाली पे .
एक दिन वो मुरझा जाते है...

प्यार कितना भी करे हम...किसी से टूट कर हम...
एक दिन वो बेवफा हो जाते है...

Saturday, August 22, 2009

तू तो मेरी अपनी परछाई है!!



साथी तू तो मेरी जिन्दगी में समाई है कैसे कहे की तू मेरी अपनी नहि परायी है..

आज के ही दिन खुदा ने भेजा था..जमी पे तुझको.. क्यू की उनको भी पता था..आपके प्यार आपकी दोस्ती की जरुरत थी मुझको.

तेरी इन प्यारी प्यारी आँखों में हमारी सारी खुशिया समाई है.. कैसे कह दे की तू मेरी नहि परायी है..

अरे साथी तू तो मेरी अपनी परछाई है.. इस जनम की सारी ख़ुशी मैंने तुझसे ही तो पाई है.. तू तो मेरी अपनी है..बाकि सब तो परायी है.. तू तो मेरी अपनी परछाई है..
जब कभी भी देखा आँखों में मैंने तेरे आया मेरा ही चेहरा नज़र उश्मे.. जहा पल पल में बदलती है तदबीर देखि मैंने कभी ना बदलने वाली अपनी तस्वीर..

इस जहा की सारी ख़ुशी जैसे मेरे दामन में चली आयी है. तू तो मेरी अपनी है... बाकि सब तो परायी है..
साथी तेरे साथ हर रिस्तो को जीया मैंने. ख़ुशी दे दी मुझे और मेरे जख्मो का मलहम दिया तुमने भूल नहि सकता इसके किसी भी रूप को जो सबसे निराला है.. जिसे ना मिला साथी का प्यार वो बदकिस्मत और जिसे मिला
वो मुझसा किस्मत वाला है.. साथी का प्यार दोस्ती सब मेरे हिस्से आयी है.. यह मत पूछो की यह बंधन किसने बनाई है.. साथी तो मेरी अपनी है बाकि सब परायी है..
कैसे कह दे की यह गैर है मेरे लिए!! यह तो मेरी खुद की परछाई है.

Sunday, July 19, 2009

रिश्तो के रंग साथी के संग


















जाने
पल में कैसे बदल जाते है रिश्ते !!
एक पल में बनते है रिश्ते अगले पल कैसे बिखर जाते है ये रिश्ते !!
रिश्तो की रंग है हज़ार.
कोई है इनसे मालामाल तो कोई है इनसे बेजार

किसी को कदर नही रिश्तो की
तो कोई एक रिश्ता पाने के लिए मिन्नतें कर रहा बार २
मैंने भी एक एक रिश्ता बनाया
दिल से उसे चाहा
दिल दीवारों को उशी तस्वीर से सजाया

एक दिन चला गया वो मुझे छोरकर मेरे प्यार भर आशियाने को तोड़ कर.. हो गए एक बार फिर से तनहा जिन्दगी में ना तो आंसू थे और ना थी.. किसी को खोने का डर !

क्यू की सिख ली थी मैंने दुनिया की अदा जो है हमारे ख्यालो से बिलकुल जुदा. पर जिन्दगी उ खत्म नही हो जाती किसी के जाने से.. सूरज डूबता है हर दिन पर दुसरे दिन फिर से निकलता है..वही जोश उशी ख़ुशी से जो वो बाट-ता है हम सभी से..

मैंने भी ऐसा किया.. फिर से खुद को सजाया. फिर से एक रिश्ता बनाया और अपने सपनो को फिर से सजाया फिर से दी अपने सपनो की उडान

फिर से डाली अपने सोये हुए जज्बातों में जान और भरी अपने साथी संग एक और उडान देखि मैंने दुनिया उनकी नज़र से.

पहली बार लगी यह मुझे बहोत ही प्यारी जो कल तक लगती थी परायी आज जिन्दगी मुझे लगती है मेरी अपनी..


Saturday, June 20, 2009

Ham to jaise hai waise rahenge



Ham toh bhai jaise hain, waise rahenge Ab koyi khush ho, ya ho khafa, ham nahin badlenge, apni adaa Samjhe na samjhe koyi ham yahi kahenge Ham toh bhai jaise hain, waise rahenge

ham dil ki shehzaadi hai, marzi ki mallika
ham dil ki shehzaadi hai, marzi ki mallika
Sar pe aanchal kyun rakhe, dhhalka toh dhhalka
Ab koyi khush ho ya koyi roothhe, is baat par chaahe har baat toote
Ham toh bhai jaise hain, waise rahenge

Hamein shauq mehendi ka na shehnaai ka hai Ho.. hamein shauq mehendi ka na shehnaai ka hai Hamaare liye toh apna ghar hi bhala hai Sunta agar ho toh sun le kaazi, lagta nahin kabhi ham honge raazi

Ham toh bhai jaise hain, waise rahenge
Ab koyi khush ho, ya ho khafa, ham nahin badlenge apni adaa
Samjhe na samjhe koyi ham yahi kahenge
Ham toh bhai jaise hain, waise rahenge

Monday, March 30, 2009

ओ माँ तू मुझे बड़ी लगती है प्यारी


ओ माँ तू मुझे बड़ी लगती है प्यारी तुझपे कर दू अर्पण यह जीवन सारी फिर भी कैसे उतरेगा ओ माँ मेरा ऋण तुम्हारी !! छोटा सा बिज बनकर तेरे गर्भ में आया मैं.. बनके तेरा अंश तेरे जिन्दगी में जगह पाया मैं !! उष बिज से बना टेसू , टेसू से पौधा बनाया नित दिन अपने दूध रूपी खून पिला कर हमें हरा भरा पेड़ बनाया बक्शी मुझे यह जहा तुमने उपहार में... तेरी हार होती हमारे हर हार में..... ओ माँ तू है कितनी अच्छी कितनी प्यारी... जिसपे वार दू यह दुनिया सारी....फिर भी रहेगा कर्ज हमेशा मुझपे ओ मैं तुम्हारी !! आँखे जो खोली तो खुद को तेरे गोद में पाया !! दर्द हुआ मुझे और तेरे आँखों में दर्द उतर आया !! ओ माँ तुम हों कितनी अच्छी क्यू तुम में भरी है खुबिया सारी.. अपनी ममता भरी छाव से भर देती हो हमारे जिन्दगी में रंग हसने लगती है जिन्दगी की हर सुखी डाली ऐसी होती है माँ हमारी ना होती थी कोई चिंता और ना ही होती थी...कोई फिकर.... तेरे ममता के साये में हम होते थे...बे फिकर
ओ माँ तू मुझे बड़ी लगती है प्यारी तुझपे कर दू अर्पण यह जीवन सारी फिर भी कैसे उतरेगा ओ माँ मेरा ऋण तुम्हारी !

पार्ट २ माँ के मन की ब्यथा एक बेटे की जुबानी :

अपनी ममता भरी छाव से भर देती हो हमारे जिन्दगी में रंग !!!!हसने लगती है जिन्दगी की हर सुखी डाली!!! ऐसी होती है माँ हमारी !!
ना होती थी कोई चिंता और ना ही होती थी कोई फिकर!!
तेरे ममता के साये में हम होते थे बे फिकर!!!
फिर आज क्यू तू खुद को महफूज नहीं मानती है!!!
तुने तो हमेशा हमें अपने शरीर का अंग समझा !!!
फिर तेरी खुद की संतान ही तुम्हे क्यू अपना नही मानती है !!
क्यू तेरे अरमानो का खून किया जाता है!!!
जो तेरे है अंश वो तुझसे ही कैसे खुद को अलग आकता है.!!!
शायद कमी रह गयी तेरी चाह में!!!
तुने दिए जो मुझे बडे सपने....शायद वही आ गया माँ बेटे के बिच राह में!!
क्यू किया तुमने इतना समर्पण!!!
जो तेरी खुद की औलाद ही दिखने लगी तुझको दुनिया का दर्पण!!!!
कौन समझेगा उष माँ की तर्पण
जिसने पल पल अपने सुख सुविधा सबकुछ किया
अपने औलाद को अर्पण!!!
तेरी कोई जगह नही ले सकता ओ माँ हमारी !!!
कितना भी कुछ कर दू पर कभी चुकता नही हो सकता तुम्हारा ऋण ओ मेरी माँ तुम्हारी

Tuesday, March 24, 2009

मैं तनहा हु महफिल में



मैं तनहा हु महफिल में जो तू जो नही मेरे संग
हर रंग बिनतेरे फीके है..मेरी जिन्दगी है बेरंग
मैं तनहा हु इस महफ़िल में .....
तन मेरा महकता है...जब तू मुझको छूता है..
पंख लगते अरमानो को.. बाहों में मुझको जब लेता है..
लेता है....गम लेता है.
मैं भूला भटका रहे हु.. कोई मंजिल नही मेरे संग
मैं तनहा हु इस महफ़िल में.......

यादे तेरी रुला जाती है . दिल में प्यास जगा जाती है.. २
पल पल जलते है अरमा मेरे , सपनो को सपना बना जाती है..
थम लो डोरी मेरे प्यार की कही कट ना जाये पतंग ....
मैं तनहा तनहा हु महफ़िल में..जब तू जो नही मेरे संग

तुमसे जुदा हो के जी ना पाएंगे हम... बिन तेरे मर जायेंगे हम २
टुकडो में तुम जी लोगे...टूट के हम बिखर जायेंगे सनम
हो वो हो होहो आहा अहः हां
जाते हो मुझको छोर के तुम यादे व् अपने ले जावो तुम
जाते जाते एक ठोकर दिल को मेरे दे जावो तुम..फिर हम कभी
ना याद आयेंगे.. फिर ना होगी सिकवा कोई
फिर ना जलेगी समां कोई...फिर ना बुझेगी अरमा कोई.
यादो से जख्मो को सी लेंगे... चाहे लग जाये कितने पैबंद
मैं तनहा तनहा इस महफ़िल में... जो तू जो नही मेरे संग