Monday, March 30, 2009

ओ माँ तू मुझे बड़ी लगती है प्यारी


ओ माँ तू मुझे बड़ी लगती है प्यारी तुझपे कर दू अर्पण यह जीवन सारी फिर भी कैसे उतरेगा ओ माँ मेरा ऋण तुम्हारी !! छोटा सा बिज बनकर तेरे गर्भ में आया मैं.. बनके तेरा अंश तेरे जिन्दगी में जगह पाया मैं !! उष बिज से बना टेसू , टेसू से पौधा बनाया नित दिन अपने दूध रूपी खून पिला कर हमें हरा भरा पेड़ बनाया बक्शी मुझे यह जहा तुमने उपहार में... तेरी हार होती हमारे हर हार में..... ओ माँ तू है कितनी अच्छी कितनी प्यारी... जिसपे वार दू यह दुनिया सारी....फिर भी रहेगा कर्ज हमेशा मुझपे ओ मैं तुम्हारी !! आँखे जो खोली तो खुद को तेरे गोद में पाया !! दर्द हुआ मुझे और तेरे आँखों में दर्द उतर आया !! ओ माँ तुम हों कितनी अच्छी क्यू तुम में भरी है खुबिया सारी.. अपनी ममता भरी छाव से भर देती हो हमारे जिन्दगी में रंग हसने लगती है जिन्दगी की हर सुखी डाली ऐसी होती है माँ हमारी ना होती थी कोई चिंता और ना ही होती थी...कोई फिकर.... तेरे ममता के साये में हम होते थे...बे फिकर
ओ माँ तू मुझे बड़ी लगती है प्यारी तुझपे कर दू अर्पण यह जीवन सारी फिर भी कैसे उतरेगा ओ माँ मेरा ऋण तुम्हारी !

पार्ट २ माँ के मन की ब्यथा एक बेटे की जुबानी :

अपनी ममता भरी छाव से भर देती हो हमारे जिन्दगी में रंग !!!!हसने लगती है जिन्दगी की हर सुखी डाली!!! ऐसी होती है माँ हमारी !!
ना होती थी कोई चिंता और ना ही होती थी कोई फिकर!!
तेरे ममता के साये में हम होते थे बे फिकर!!!
फिर आज क्यू तू खुद को महफूज नहीं मानती है!!!
तुने तो हमेशा हमें अपने शरीर का अंग समझा !!!
फिर तेरी खुद की संतान ही तुम्हे क्यू अपना नही मानती है !!
क्यू तेरे अरमानो का खून किया जाता है!!!
जो तेरे है अंश वो तुझसे ही कैसे खुद को अलग आकता है.!!!
शायद कमी रह गयी तेरी चाह में!!!
तुने दिए जो मुझे बडे सपने....शायद वही आ गया माँ बेटे के बिच राह में!!
क्यू किया तुमने इतना समर्पण!!!
जो तेरी खुद की औलाद ही दिखने लगी तुझको दुनिया का दर्पण!!!!
कौन समझेगा उष माँ की तर्पण
जिसने पल पल अपने सुख सुविधा सबकुछ किया
अपने औलाद को अर्पण!!!
तेरी कोई जगह नही ले सकता ओ माँ हमारी !!!
कितना भी कुछ कर दू पर कभी चुकता नही हो सकता तुम्हारा ऋण ओ मेरी माँ तुम्हारी

Tuesday, March 24, 2009

मैं तनहा हु महफिल में



मैं तनहा हु महफिल में जो तू जो नही मेरे संग
हर रंग बिनतेरे फीके है..मेरी जिन्दगी है बेरंग
मैं तनहा हु इस महफ़िल में .....
तन मेरा महकता है...जब तू मुझको छूता है..
पंख लगते अरमानो को.. बाहों में मुझको जब लेता है..
लेता है....गम लेता है.
मैं भूला भटका रहे हु.. कोई मंजिल नही मेरे संग
मैं तनहा हु इस महफ़िल में.......

यादे तेरी रुला जाती है . दिल में प्यास जगा जाती है.. २
पल पल जलते है अरमा मेरे , सपनो को सपना बना जाती है..
थम लो डोरी मेरे प्यार की कही कट ना जाये पतंग ....
मैं तनहा तनहा हु महफ़िल में..जब तू जो नही मेरे संग

तुमसे जुदा हो के जी ना पाएंगे हम... बिन तेरे मर जायेंगे हम २
टुकडो में तुम जी लोगे...टूट के हम बिखर जायेंगे सनम
हो वो हो होहो आहा अहः हां
जाते हो मुझको छोर के तुम यादे व् अपने ले जावो तुम
जाते जाते एक ठोकर दिल को मेरे दे जावो तुम..फिर हम कभी
ना याद आयेंगे.. फिर ना होगी सिकवा कोई
फिर ना जलेगी समां कोई...फिर ना बुझेगी अरमा कोई.
यादो से जख्मो को सी लेंगे... चाहे लग जाये कितने पैबंद
मैं तनहा तनहा इस महफ़िल में... जो तू जो नही मेरे संग

Saturday, March 14, 2009

MAI EK FUSE BULB HU.....


mai ek fuse bulb hu.q button baar baar daba rahi ho.Roshni hi chahti ho naa....to bulb badal lo. yeh kale reshe jo tum mere shirt me dekh rahi ho.darashal wo meri dukh ki lariya hai.jinse Bun kar mai bana hu..Pyar mohabaat yeh sab sapne jaisa hai mere liye.jo aankh khulte hi toot jate hai.milte to hai hazaro har kadam pe rishtey.par un rishto ka kya jo.kuch kadam saath chalkar fir choot jate hai.nahi aitbar mujhe kisi ka aur nahi khushi ka intezar hai koi.Mai to hu.sabhi ke liye.par na hai hamara koi.bas dil me yeh arman liye.jee raha hu.ki kisi ko chaha tha.maine khud se jyada.jo ban gaya tha mera khuda.aab ishke.judayee aur bewafaee ka ghoot mai akele 2 hi pee raha hu.mat dikhawo mujhe sapne.dar lagne laga hai...har ek khushi se.jo de nahi sakti.khusi.kisi ko.kya karna ush pal do pal ki hasiiiii ko.bas aab tum.switch dabana chor do.mai jaisa hu.waisa hi rahoonga.naa aayegi kabhi.prakash aab.gar chahiye to roshni tumhe.to bulb hi badal dalo.mai hu ek fuse bulb.jab tak bana raha khud ke khushi ka dushman.rishtey har mod pe mile.kabhii.dost.to kabhi.dushman bhi dost ke roop me mile..jab chahi jo khushi maine.to dost dushman ho gaye.yeh thi.meri roshni.aur mera.wo prakash.jo thi.aakhiri baar.chamki fir jo bujhi to fir kabhi na jali.q ki itna jali.ki fir.na bacha kuch baki.u to kahte hai.ki andhera kitna bhi purana q na ho.roshni..ki ek kiran hi kafi hai ushe door bhagane ke liye.par meri.jindgi hi andhere me ghiri hai..aur andhere hi ban gaye jo mere sathi.mere sapne mere arman tel bankar jalte rahe.diye me.aur jalte rahe.sare khushi din rati.ab kaun banayega mujhe dost.aur mujhe apna sathi.kuch aur na chahiye mujhe tumse.itna kuch to diya hai.tumne mujhe.bas ek kaam aur kar do.sare mehfil me mujhe badnam kar do.kar do mujhe rushwa.aur ek gunah aaj mere naam kar do.

Tuesday, March 10, 2009

खुद से नाराज़ हु मैं


खुद से नाराज़ हु मैं
खुद का गुनेह्गर हु मैं
हर बार चोट दी है मैंने इशे....
क्यू की चोट खाने का हक़दार हु मैं !
खुद का गुनहगार हु मैं !!
हम क्यू खुद को कम आकते है.
अपने हिस्से की प्यार और ख़ुशी भी क्यू औरो में बाट ते है..
हम अपनी ही दुःख के खरीदार है हम...
खुद का गुनहगार है हम !!
माना की वो मेरे साँसों में बसते थे..
मन ही मन उनसे बाते किया करते थे..
थी क्या जरुरत मुझे उन्हें सबकुछ बनाने की
जब बहोत कुछ के हक़दार थे तुम
खुद के गुनहगार है हम !!
दूर थे वो हमसे.... दिल को एक सकूँ था
पास बुलाया तो दिल में डर और आँखों में दिख जाये ना
तस्वीर उनकी...दिल में डर जरुर था..
की मैंने खता ऐसी...बाट डाली सबसे उनकी प्यार और अपनी हसी
मुझे क्या खबर थी...की यह ख़ुशी एक दिन मुझसे खो जायेगी..
मुझसे दूर चली जायेगी और उनकी हो जायेगी..
अब यह ख़ुशी ना जायेगी कभी पाई
क्यू की दिल को मेरे यह रस्मो और रिश्ते ना मुझको भायी!!
मैं भी कैसा हु बावला...और देखो मेरी यह कर गूजाये
सबकुछ खो कर भी....अब भी अंधेरो में ढूँढ रहा हम परछाई
उनके प्यार का तलबगार हु मैं..
अपनी खुशियों का गुनहगार हु मैं.
मिले हर मोड़ पे रिश्ते कई
सबने मेरे जिन्दगी में रंग भरे.. कुछ ने काले..कुछ ने हरे.
कुछ ने नीले पीले भरे
हर रंगों में उनके प्यार के रंगों को पाया..
यु तो हर किसी ने चाहा पर उनकी चाहत hi q मेरे दिल को
खूब भाया !!
आज उनकी चाहत को दिल में दबा कर चला जाऊँगा मैं..
इतनी जाऊँगा दूर उनसे....की खुद की यादो को भी उनसे दूर पाऊँगा मैं.
कैसे कहे की वो मेरे गुनहगार है...
अपनी दुःख के खुद हक़दार है हम!!!

Kisi ko Na apna banana hai..


कोई मुझे अपना बना ले. पर अब ना किसी को अपना बनाना है...
वो दूर गए तो क्या रिश्ता वफ़ा का निभाना है..
वो पूछते है हमसे की क्यू ना देते हो अपनी वफाये
यह ना सोचा किसी ने जो है अन्दर से टूटा
वो भला क्या देगा सदाए !!
एक आवाज़ सी आयी कही से और फिर से गुजी
फिजा में किसी की सिसकारी !!!
मैंने देखा हर तरफ उशे ....फिर महसूस किया वो तो थी हमारी !!
दोस्ती की उसका दर्द भी देखा.. एक बार नाही हर बार ने मेरे अरमानो को
उस्ने लूटा!!
वो भी क्या करता जब रिश्ता और रिश्ते की निब ही था jhoota
नही ab ना अपना प्यार जाताना है....कोई मुझे अपना बना ले. पर अब ना किसी को अपना बनाना है.
मिले वो मुझे लगा जैसे जिन्दगी मिल गयी.
जिन्दगी के भवर में जैसे कोई साहिल मिल गयी !!
चल चला मैं साथ उसके... हर कदम पे साया बना !!
कभी बना उसके लिए किसी का अपना...तो कभी किसी के लिए पराया बना !!
फिर भी ना साथ छोड़ा उसका...और हर पल उसका किनारा बना !!
एक दिन...किनारे लहरों में समां गए , जाते जाते...वो मेरी हस्ती मिटा गए !!
फिर से अपनी एक अलग बस्ती बसाना है.... फिर से अपनी अलग पहचान बनाना है.
कोई मुझे अपना बना ले. पर अब ना किसी को अपना बनाना है.!!!
कभी बहोत खास था मैं.. क्यू की दिल के बहोत पास था मैं...
सुनायी दे जाती थी धड़कने सारी उनकी...
क्यू हर धडकनों की आवाज़ था मैं..आज ना दिल रहा ना धड़कने रहे कोई बाकि..
सायद इशे भी अभाष हो गया था...की ख़तम होने वाली है अब इनकी हस्ती..

जिन्दगी के सफ़र में उनको किनारा मिल गया था...
हमें छोर चुके थे...वो क्यू की उनको हमारा मिल गया था...
ab रिश्ते वफ़ा का ना निभाएंगे हम..
कोई मुझे अपना बना ले. पर अब ना किसी को अपना बनायेंगे